परिंदा - लेखनी काव्य प्रतियोगिता -24-Jan-2024
परिंदा
बेशक हालात ने पर कुतर दिए हो मेरे
मैं वो परिंदा हूं, जिसकी उड़ान अभी बाकी है
न जाने कितनों को समेट लिया होगा- तूने अपने आगोश में
मैं गुजरा हुआ वक्त नहीं, मेरा फिर से लौटना अभी बाकी है
होगा अंधकार घना घनेरा घनघोर तो क्या—--
मैं वो चांद हूं, जिसका चमकना अभी बाकी है
माना भटक जाते हैं राही अंधेरी रात में
मैं वो सूरज हूं, जिसकी चकाचौंध अभी बाकी है
मैं थोड़ा ठहरा जरूर हूं- मैदान नहीं छोड़ा
मेरे सितारों की गर्दिश अभी बाकी है
कर लेना कोशिश- जितना हो तुझमे दम
मैं शिद्दत से करूंगा अपना हर काम, मेरा निखरना अभी बाकी है।
🙏🙏🙏🙏🙏
दिलावर सिंह
#प्रतियोगिता हेतु
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Mohammed urooj khan
27-Jan-2024 02:17 PM
लाजवाब 👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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Shashank मणि Yadava 'सनम'
25-Jan-2024 09:06 AM
Wahhh,,, बहुत ही खूबसूरत और उम्दा रचना
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Varsha_Upadhyay
25-Jan-2024 12:39 AM
बहुत खूब
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